हिंद
महासागर
1-हिंद महासागर विश्व के पाँच प्रमुख महासागरों में से एक है। यह
महासागर भारत के दक्षिण में स्थित है और इसी कारण इसका नाम "हिंद
महासागर" पड़ा है। यह महासागर एशिया,
अफ्रीका,
ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका के बीच फैला
हुआ है और इसका विस्तार लगभग 7 करोड़ वर्ग किलोमीटर में है। आकार की दृष्टि से यह तीसरा सबसे
बड़ा महासागर है, लेकिन यह एकमात्र ऐसा महासागर है जिसका नाम किसी देश के नाम पर
रखा गया है – भारत।
2-हिंद महासागर की सीमाएँ उत्तर में एशिया (विशेष रूप से भारत), पश्चिम में अफ्रीका, पूर्व में
ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण में दक्षिणी महासागर से मिलती हैं। इसके महत्वपूर्ण समुद्री
भागों में अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर शामिल हैं। इसमें कई प्रमुख
बंदरगाह हैं, जैसे मुंबई, कोच्चि, चेन्नई, कोलंबो, कराची, और सिंगापुर।
3-यह महासागर न केवल भारत के लिए,
बल्कि पूरी दुनिया के लिए व्यापारिक, सामरिक और भौगोलिक
दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। विश्व व्यापार का एक बड़ा हिस्सा इसी महासागर
से होकर गुजरता है। खाड़ी देशों से आने वाला तेल और प्राकृतिक गैस का परिवहन इसी
समुद्री मार्ग से होता है। इसी वजह से यह महासागर "ऊर्जा गलियारे" के
रूप में भी जाना जाता है।
4-हिंद महासागर समुद्री जीव-जंतुओं और प्राकृतिक संसाधनों का
भंडार भी है। इसमें मछलियों, समुद्री पौधों और खनिजों की भरमार है। यह मत्स्य उद्योग के लिए
अत्यंत लाभकारी है। इसके अलावा, इस क्षेत्र में तेल और गैस के भंडार भी पाए जाते हैं, जो ऊर्जा संसाधनों की
दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
5-परंतु, आज हिंद महासागर भी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। समुद्री
प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन,
अवैध मछली पकड़ना और क्षेत्रीय शक्ति
संतुलन जैसी समस्याएँ इसके भविष्य के लिए खतरा बनती जा रही हैं। चीन, अमेरिका, भारत और अन्य देशों
की सामरिक गतिविधियाँ भी इस क्षेत्र में बढ़ती जा रही हैं, जिससे भू-राजनीतिक
तनाव उत्पन्न हो सकते हैं।
6-भारत के लिए हिंद महासागर की भूमिका अत्यंत विशेष है। यह भारत
की समुद्री सीमाओं की रक्षा, व्यापारिक संपर्क,
ऊर्जा आयात, और रणनीतिक उपस्थिति
के लिए एक अहम माध्यम है। “सागर” नीति (Security and Growth for All in the
Region) के माध्यम से भारत इस क्षेत्र में
स्थिरता, सहयोग और सुरक्षा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है।
निष्कर्ष:
हिंद महासागर केवल एक विशाल जलराशि नहीं, बल्कि आर्थिक, राजनीतिक और
पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। इसका संतुलित और सतत उपयोग
न केवल भारत बल्कि समस्त विश्व के लिए आवश्यक है। हमें इसके संसाधनों का
विवेकपूर्ण उपयोग करते हुए इसे प्रदूषण और अत्यधिक दोहन से बचाना चाहिए।
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